यह मेरी पहली Real True Story है जो कि मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। दोस्तों मैं CRPF में Head Constable Ministerial के पद पर वर्ष 2013 में भर्ती हुआ था। काफी लोग इस एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो उनको बताने के लिये कि आखिर कैसे में CRPF Head Constable Ministerial के पद पर भर्ती हुआ इस ब्लॉग को लिखा है। इस ब्लॉग में मैंने अपने साथ घटित हुई पूरी कहानी को लिखा है।
बात है अक्टूबर 2012 की, पूरे उत्तर भारत में सर्दी पढ़ना शुरू हो रही थी, जब मैंने पहली बार CRPF HCM के फार्म के बारे में सुना। उस समय मैं B.Sc. कंपलीट कर चुका था और PGDCA (Post Graduate Diploma in Computer Application) कर रहा था। मेरा एक दोस्त जिसका नाम शिवम है वह मेरे घर के पास ही रहता था उसने मुझे बताया कि CRPF में Head Constable Ministerial के पद पर भर्ती निकली हैं तुम फार्म डाल देना, मैंने उससे कहा यार मेरी तो न हाइट है और न ही चेस्ट है, मैं कैसे डाल सकता हूंं इसका फार्म, इसमें तो वही भर्ती होते हैं जिनकी लम्बी हाइट होती है, और जो हट्टे कट्टे होते हैं। उसने कहा नहीं ऐसा नहीं है इसमें 165 सेमी हाइट मांगी गयी है और सीना 77 सेमी मांगा गया है। मैंने पूंछा तुम डाल रहे हो क्या, वह बोला हां, तो फिर मैंने कहा कि मेरे लिये भी एक फार्म ले ले मैं भी डाल देता हूं। उसने ही मेरे लिये फार्म लिया और उसी ने ही भरकर पोस्ट किया।
मैं तो इस फार्म को मन से डाला भी नहीं था क्योंकि मुझे लग रहा ता कि इसमें तो वही लोग भर्ती होते हैं जिनकी अच्छी खासी ब़ॉडी होती है। इसके साथ ही मेरे कुछ और दोस्तों ने भी इस फार्म को डाला। उन दोस्तों के नाम हैं – मोना और नीरज। अब हमारे मोहल्ले में कुल चार लोगों ने इस फार्म को डाला था- मैं, मोना, शिवम, नीरज। आपको बताना चाहता हूं कि शिवम आज CRPF में Constable GD के पद पर श्रीनगर में तैनात है, मोना UP Police में Constable GD के पद पर झांसी में तैनात है और नीरज Lucknow में रोडवेज बस में नौकरी करता है। नीरज के हाथ की उंगली, गांव में चारा काटने वाली मशीन से कट जाने के कारण वह मेडीकल में अनफिट हो गया था इसलिये उसने फिर फोर्स में आने का मूड ही बदल दिया था।
जब मेरा फिजिकल के लिये कॉल लैटर आया
कुछ दिन बाद मेरे घर पर एक कॉल लैटर आया CRPF की तरफ से, लैटर को खोलकर देखा तो CRPF Head Constable Ministerial का फिजिकल के लिये कॉल लैटर था। मैंने तो सोच रखा था कि मैं नहीं जाऊंगा लोग हंसेंगे और मुझे देखकर बोलेंगे कि ये बच्चा कहां से आ गया, उस समय मेरी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। कुछ दिन बाद मेरे दोस्त शिवम शाक्य का भी कॉल लेटर आ गया। हम दोनों लोगों का अलग अलग डेट में फिजिकल था। पहले उसके फिजिकल की डेट थी उसके बाद मेरी। तो शिवम तो चला गया फिजिकल देने के लिये, जब दो दिन बाद मुझे वह मिला तो मैंने उससे बड़े ही उत्सुकता के साथ पूंछा कि भाई बता वहां क्या क्या हुआ तेरे साथ।

उसने बताया कि उसे चेस्ट फुलाने में फेल कर दिया गया, उसने 5 सेमी चेस्ट नहीं फुला पायी। उसने बताया पहले हाइट नापी गयी फिर सीना नापा गया फिर वजन नापा गया। मैंने कहा दौड़ नहीं लगवायी गयी। वह बोला नहीं इसमें दौड़ नहीं होती है तब मेरे दिल में एक बार तो लगा कि चलकर देखना चाहिए आखिर होता क्या है वहां। मैं उससे ऐसे ही पूंछता रहा तुम जब अन्दर गये तब क्या हुआ। उसने मुझे सबकुछ डिटेल में बताया जो कुछ भी उसके साथ हुआ था। अब मैं आपको अपनी कहानी बताता हूं कि मेरे साथ क्या क्या हुआ।
अब वह दिनांक भी आ गयी जिस दिन मेरा फिजिकल होना था। दिनांक थी 28 जनवरी 2013, मुझे यह डेट अभी भी याद है मैं इस डेट को कभी नहीं भूल सकता। मैं कभी भी अपने शहर इटावा से बाहर नहीं गया था। मैंने अपना ट्रेन में रिजर्वेशन पहले ही करवा लिया था। जब मैं रेलवे स्टेशन लखनऊ पहुंचा वहां से मैंने एक ऑटो किया उसने मुझे CRPF कैम्प लखनऊ छोड़ा। भाई उस समय क्या सर्दी पड़ रही थी मैं आपको बता नहीं सकता। ऑटो में सिकुड़ कर बैठा था । उस ऑटो में जितनी भी सवारी थी सभी भर्ती वाले लड़के थे।
कैम्प के बाहर तो लड़को का मेला लगा था। कोई केले खा रहा था, कोई अपने मोबाइल में गाना सुन रहा था। सभी लड़के गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे। कुछ लड़के वहां पर अपना बिस्तर लगाकर लेटे हुए थे। मैंने भी 20 रुपये के केले लिये और खाये क्योंकि मुझे भूख लग रही थी। थोड़ी देर बाद वहां पर एनाउंसमेंट हुआ कि मोबाइल व अन्य सामान अन्दर लेकर नहीं जाना है। मेरे पास एक Nokia 5233 मोबाइल था मैंने यह मोबाइल नया ही खरीदा था 6000 रुपये का। वहीं पर कुछ दुकान वाले मोबाइल, बैग जमा कर रहे थे और 10 रुपये ले रहे थे और एक टोकन दे रहे थे। मैंने भी अपना मोबाइल स्विच ऑफ किया लेकिन सिम कार्ड व 16 जीबी का मेमोरी कार्ड नहीं हटाया।
ऐसे ही स्विच ऑफ करके ईयरफोन के साथ उस बैग में रखा और पूरा बैग उस दुकान वाले को जमा कर दिया। उसने मुझे एक टोकन भी दिया था जिस पर एक नम्बर लिखा था और मोबाइल का नाम लिखा था। बैग जमा करने के कुछ देर बाद लगभग 7 बजे के समय मैन गेट खुल गया और एंट्री होने लगी। हम लोग गेट के अंदर गये वहां पर हम सभी लोंगों को पहले जमीन पर बिठाया गया। गेट पर ही हम लोगों की गिनती हुई उसके बाद हम लोगों को एक सिपाही दौड़ाकर भर्ती ग्राउण़्ड में लेकर गया। वहां सभी लोगों से कुछ फार्म भरवाये जा रहे थे। मैंने भी फार्म भरा फिर हम लोगों के डॉक्युमेंट्स चैक हुए फिर हम लोगों का फिजिकल हुआ। एक अधिकारी हाइट नाप रहा था, फिर चेस्ट नाप रहा था और उसके बाद वजन वाली मशीन पर खड़े होने के लिये बोलता था फिर वह वजन लिखता था। काफी सारे लड़के लाइन में लगे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, मैं भी अपनी बारी का इंतजार कर रहा था ।
मैं तो लडकों का सीना फुलाने की स्टाइल पर हस रहा था। कुछ लड़के ऐसे सीना फुला रहे थे जैसे कि नापने वाले की छाती पर ही चड़ जायेंगे। देखकर सभी लोग हंसने लगते थे। इंतजार करते करते दोपहर के 3 बज गये फिर मेरी बारी आयी और मेरा भी हाइट, वेट, चेस्ट नापा गया जिसमें मैं पास हो गया। फिर हमारे उसी कॉल लैटर पर एक मुहर लगा दी गयी जिस पर लिखा था कि आपका रिटिन एक्जाम 10 मार्च 2013 को काशीराम सांस्कृतिक स्थल लखनऊ में होगा। मैं बहुत ही खुश था कि मैं पास हो गया।
जब मेरा मोबाइल चोरी हुआ – My Real True Story
अब मैं अपना कॉल लैटर लेकर कैम्पस के बाहर आया और अपना बैग उस दुकान वाले से मांगा उसने मुझसे टोकन मांगा। मैंने उसे टोकन दिखाया वह बैग निकाल कर लाया। मैंने बैग चैक किया उसमें से मेरा मोबाइल चोरी हो चुका था। मेरा मोबाइल उस दुकान वाले ने निकाल लिया था। मैंने उससे कहा कि इसमें मोबाइल कहां है वह बोला कौन सा मोबाइल मैंने कहा कि इसमें एक मोबाइल था Nokia 5233 टच स्क्रीन। मैंने उसको टोकन भी वापस देखने के लिये मांगा तब तक वह टोकन को फाड़ कर फेंक चुका था। मैं उस जगह पर अकेला था उसने बोला कि आपने मोबाइल रखा ही नहीं होगा। मैं काफी देर तक उसके साथ बहस करता रहा तब तक उसकी पत्नी आ गयी वह जोर जोर से चिल्लाकर मोहल्ले वालों को इकट्ठा करने लगी और बोली हम लोग यहां वर्षों से बैग जमा कर रहे हैं कभी भी ऐसी चोरी नहीं हुई और तुम हम लोगों पर चोरी का इल्जाम लगा रहे हो।

मैंने कहा जब मैं बैग जमा कर के गया था इसमें मोबाइल था लेकिन उसमें से लीड, मोबाइल, चिप सिमकार्ड सहित मोबाइल पूरा गायब था। बहुत देर तक बहस करने के बाद मुझे लगा कि चलना चाहिए कुछ फायदा नहीं होगा यहां आज तो मोबाइल गया हाथ से। मैं वहां से वापस रेलवे स्टेशन के लिये चल दिया। मेरे घर वाले सब परेशान हो रहे थे क्योंकि मेरा मोबाइल सुबह से स्विच ऑफ हो रखा था। मैं रेलवे स्टेशन पहुंच कर PCO से अपने पापा के पास फोन किया और बताया कि मेरा मोबाइल चोरी हो चुका है। मेरे पापा ने मुझसे कहा कि बेटा चिंता मत करो दूसरा दिलवा देंगे तुम ठीक हो बस इतना काफी है और मोबाइल ले लेंगे तुम सही सलामत घर आ जाओ, फिर स्टेशन पर जाकर मैंने जनरल डिब्बे की टिकट ली और वापस अपने घर चला आया।
मेरा मोबाइल वापस कैसे मिला
यह मेरी Real True Story है। मैं बचपन से मोबाइल, इंटरनेट में ज्यादा इंटरेस्ट रखता था। इसलिये मैंने पहले से ही उस मोबाइल में Mobile Tracker लगा रखा था। जैसे ही कोई उस मोबाइल की सिमकार्ड को चेंज करता था उसके जस्ट 2 सेकेंड में उसमें डाली गयी नयी सिम से एक मैसेज मेरे पापा के फोन पर आ जाता था जिसमें उस सिम का नम्बर तथा लोकेशन आ जाती थी। कहीं न कहीं मुझे विश्वास जरूर था कि जिसने भी मोबाइल चुराया होगा सिम तो डालेगा ही।
अब मैं तो घर वापस आ गया था फिर धीरे-धीरे करके मेरे दोनों दोस्तों का भी फिजिकल हो गया , मोना और नीरज दोनों फिजिकल में पास हो गये। अब बारी आने वाली थी रिटिन की । हम तीनों लोग रिटिन की तैयारी करने लगे थे जिसके लिये मैंने एक किताब भी ले ली थी और मैंने कोचिंग सेंंटर भी ज्वाइन कर लिया था। मैं PGDCA कर रहा था जिसमें जाकर मैं पहले 10 मिनट तक टाइपिंग की प्रैक्टिस भी करता था। इस प्रकार मेरी टाइपिंग प्रैक्टिस अलग चल रही थी और रिटिन की तैयारी अलग से चल रही थी। हम तीनों लोग आपस में किताबों को बदलकर पढ़ाई किया करते थे।
8 मार्च 2013 को मेरे पापा के मोबाइल पर एक मैसेज आया, यह मैसेज और कोई नहीं उसी का मैसेज था जिसने भी मेरे नोकिया 5233 मोबाइल में सिम डाली थी, जो मोबाइल मेरा चोरी हो गया था उस मोबाइल में अब किसी ने सिम डाल ली थी। मैंने तुरंत मैसेज खोलकर देखा तो उसमें लोकेशन दिखा रहा था वाराणसी की और जो सिम डाली गयी थी उसका नम्बर भी आ गया था। मैंने तुरंत उस नम्बर पर कॉल लगाया। उधर से किसी लेडीज की आवाज आयी मैंने कहा यह मोबाइल आपके पास कहां से आया, वह बोली कि मेरे शोहर लाये हैं, वह एक मुस्लिम लेडी थी। मैंने कहा कि यह मोबाइल चोरी का है, आपके पास कहां से आया, इतना सुनते ही उस महिला ने मोबाइल तुरंत स्विच ऑफ कर लिया।
अब मैं बार बार उस नम्बर पर कॉल लगा रहा था लेकिन मोबाइल स्विच ऑफ जा रहा था। अगले दिन उसने नयी सिम डाली, वो नम्बर भी ट्रैक होकर मेरे पापा के मोबाइल में मैसेज में आ गया। अब मेरे भाई ने बात की और सीधा कहा कि मैं सिविल लाइन थाने से SHO बोल रहा हूं, आपके इस नम्बर पर रिपोर्ट दर्ज हुई है कि आप यह मोबाइल चोरी का इस्तेमाल कर रहे हैं, इतना सुनते ही उस महिला की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी। फिर उसके घर के किसी बुजुर्ग व्यक्ति ने बात की। उससे पूंछा कि यह मोबाइल कहां से लाये हो तो उसने बताया कि ये मोबाइल 1500 रुपये का मोबाइल मंडी से खरीदा है। वहां कोई मोबाइल मंडी होगी जहां पर ऐसे चोरी के फोन बिकते होंगे खैर आगे वह बुजुर्ग भी काफी डर चुका था क्योंकि मेरे भाई ने इस अंदाज में कहा ही था ऐसा लग रहा था जैसे वास्तव में कोई दरोगा ही बात कर रहा हो।
उस बुजुर्ग व्यक्ति के घर के पास कोई लड़का मोबाइल की दुकान किये हुए होगा, उसने वह मोबाइल उस लड़के को दे दिया और बताया कि यह देख किसी का फोन आ रहा है और कुछ बता रहा है। फिर मैंने उस लड़के से बड़े ही आराम से बात की। वह लड़का बी.एस.सी कर रहा था और साथ में ही मोबाइल की दुकान भी चलाता था। उस लड़के ने मुझे बताया कि कोई व्यक्ति इन्हें इस मोबाइल को बेंच कर चला गया और ये बुजुर्ग आदमी हैं इनको पता नहीं था कि मोबाइल चोरी का है या नहीं, और इनको मोबाइल के बारे में जानकारी भी नहीं थी।
इन्होंने समझा सस्ता दे रहा है, तो ये ले लिये। उस लड़के ने बहुत ही सरल भाषा का इस्तेमाल किया। उसने बड़े ही नर्म अंदाज में बात की। फिर मैंने उससे कहा कि मोबाइल सर्विलांस पर लगा हुआ है, आप इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते। यह मोबाइल मेरा है, मुझे वापस दे दो। वह बोला कि ठीक है ले जाओ। वाराणसी इटावा से लगभग 600 किलोमीटर पड़ता है। मैंने उससे कहा कि आप कानपुर या लखनऊ तक आ जाओ इतना ही मैं इधर से आ जाता हूं, आपका जितना भी खर्चा होगा मैं आपको दे दूंगा, लेकिन वह आने के लिये तैयार नहीं हुआ । वह बोला कि आप मुझे पुलिस में पकड़ा देंगे, मारेंगे, पीटेंगे। बोला कि आप ले जाओ , मैं आपका मोबाइल में कछ भी नहीं किया हूं, जैसा था वैसा ही है। उसमें 16 जीबी का मैमोरी कार्ड भी पड़ा था, वह भी है।
मैंने उससे बहुत कहा कि भाई तुम्हें कुछ भी नहीं करेंगे, तुम मोबाइल लेकर आ जाओ। दोस्तों रियल बात यह भी थी मैं भी डर रहा था किसी दूसरे के इलाके में जाकर आप अपना मोबाइल कैसे ला सकते हैं, मैं कहीं मोबाइल लेने जाऊं, कहीं खुद ही पिट कर न आ जाऊं। इसलिये मैं उसको बोल रहा था कि आधी दूरी वो चले और आधी दूरी मैं चलूं, उसका जितना भी खर्चा होगा मैं देने के लिये तैयार था, लेकिन वह लड़का तैयार नहीं हुआ। फिर मेरे ताऊ का लड़का जो कि दिल्ली में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है उसका दोस्त जो कि उसी का रूम पार्टनर था, उसका घर वाराणसी में ही पड़ता था औऱ वह उस समय अपने घर वाराणसी में ही था। मैंने उसको वह मोबाइल लाने के लिये बोला।
मैंने उस लड़के की उस दोस्त से बात करायी और दो तीन दिन बाद वह मोबाइल मेरे हाथ में आ गया। अपना मोबाइल पाकर मैं बहुत खुश हो गया था और अपना मोबाइल पाकर अब मैं यह भी सोच रहा था कि शायद भगवान की यही मर्जी थी कि मैं दिन भर मोबाइल में लगा रहता हूं इसका मोबाइल की गुम करा दिया इस बहाने में पढ़ाई तो कर लिया था, जिसकी वजह से मैं आज एक सरकारी नौकरी करता हूं।
जब हमारा Written Exam हुआ
खैर अब आगे की बात बताता हूं आखिरकार वह दिन भी आ गया जिस दिन हमारा रिटिन होना था, यानिकि 10 मार्च 201, हम तीनों लोग (मैं, मोना और नीरज) जनरल डिब्बे में एक साथ इटावा से चले और रात में 11 बजे लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पहुंच गये। जब मैैं इटावा से चला तो बिल्कुल भी सर्दी नहीं थी सभी लोग शर्ट में घूमते थे लेकिन जब मैं रात में लखनऊ स्टेशन पर पहुंचा मुझे तो बहुत ठंड लग रही थी मैंने दोनों लोगों से पूंछा कि तुम्हें भी ठंड लग रही है क्या, वह बोले यार यहां तो बहुत ठंड है। फिर हम लोगों ने निर्णय लिया कि हम लोग सुबह 4 बजे सेंटर पर पहुंचेंगे तब तक यहीं स्टेशन पर सो जाते हैं। मैंं और मेरे दोनों दोस्त वहीं चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर खुले आसमान के नीचे एक पॉलीथीन बिछाकर लेट गये ,वहां पर पहले से ही काफी लोग लेटे हुए थे ।
हमने भी वहीं साइड से जगह बनाकर तीनों लोग लेट गये। वह तो शुक्र था कि मोना एक चादर डाल लाया था जिसे रात में तीनों लोगों ने एडजस्ट करते हुए ओड़ा लेकिन ठंड तो बहुत बड़ती ही जा रही थी। मैं उस रात को कभी नहीं भुला सकता। उस रात मैं ठंड में सिकुड़ता रहा और स्टेशन के बाहर खुले आसमान के नीचे रात भर पड़ा रहा। नींद तो आ ही नहीं रही थी ठंड की वजह से। मेरा पूरा शरीर ठंड की वजह से कांप रहा था लेकिन जैसे तैसे रात निकाल ली। सुबह 4 बज गया। हम लोगों ने अपना बोरिया बिस्तर उठाया और ऑटो में बैठने के लिये पहुंचे। वहां पर पहले से ही काफी सारे लड़के रुके हुए थे। हम लोगों ने ऑटो वाले से पूंछा कि ये काशीराम सांस्कृतिक स्थल कहां है , चलोगे क्या। वह बोला ये सभी लोग वहीं जायेंगे आप लोग भी इसी में बैठ जाओ। हम तीनों लोग उस ऑटो में बैठ गये और जहां रिटिन होना था उस सेंटर के बाहर पहुंच गये।
अब वहां पर क्लियर इंस्ट्रक्शन था कि कोई भी मोबाइल या अन्य ़डॉक्युुमेंट अन्दर नहीं ले जायेगा। अब हम तीनों के पास एक एक मोबाइल था। इस बार मैं सस्ता वाला मोबाइल लेकर गया था, क्योंकि एक बार मेरा मोबाइल चोरी हो चुका था और मैं नहीं चाहता ता कि दोबारा मोबाइल चोरी हो। वहां पर भी कुछ लोग बैग जमा कर रहे थे, लेकिन वहां पर दुकाने नहीं थीं, लोग अपने घर में ही जमा कर रहे थे और एक कागज के टुकड़े पर नम्बर डाल दिये थे और वही नम्बर उस बैग पर डाल देते थे। भीड़ बहुत थी काफी सारे लड़के इकट्ठा हो चुके थे। वहीं सड़के के किनारे पर एक गरीब महिला और उसकी एक बच्ची गमले बनाने का काम किया करते थे और उनका एक टैम्परेरी घर था त्रिपाल लगाकर अपना गुजारा कर रहे थे, जिन्हें हम आम भाषा में बंजारे वाला बोलते हैं।
वह महिला भी रुपये के लालच में बैग जमा करने लगी और लकड़ियों से बने टट्टर का घर जो कि त्रिपाल लगा हुआ था उसमें 10-10 रुपये में बैग जमा करने लगी। जब वह बैग जमा कर रही थी तब तो भीड़ नहीं थी एक या दो लड़के आते थे अपना बैग जमा करके चले जाते थे। वह महिला भी एक कागज पर नम्बर डाल कर दे रही थी। हम तीनों ने अपने सारे मोबाइल और अन्य सामान उस बैग में डाला और उस महिला के पास जमा कर दिया और टोकन ले लिया, जो कि सिर्फ एक नम्बर था सादा कागज के टुकड़े पर। हम तीनों लोग पेपर देने के लिये एंट्री कर लिये । जब ग्राउंड में गये तो देखा अन्दर बहुत सारे झण्डे लगे हुए थे। वहां पर दुनिया भर का फोर्स नजर आ रहा था।
मैंने एक सिपाही से पूंछा कि सर मुझे कहां बैठना है। उसने मेरा वही कॉल लैटर देखा और रोल नम्बर के हिसाव से उसने मुझे एक झण्डे की तरफ जाने का इशारा किया । मैं उधर ही चल दिया, फिर वहां पर मेरा रोल नम्बर के हिसाब से मुझे बैठने के लिये बोला, वहां पर न कोई टेबल थी और न ही कोई छत। खुले आसमान के नीचे दोपहर में ऊबड़ खाबड़ खेत में बैठकर हमने पेपर दिया। पेपर तो ठीक ही कर लिया था लेकिन मैथ मुझे कम आता था इसिलये मैंने मैथ वाला सेक्शन सबसे बाद में अटेम्पट करने का सोचा था। अब पेपर पूरा हो चुका था। हम तीनों लोग वहां से बाहर आये और अपना बैग लेने के लिये उसी महिला के झोपड़ी में गये।
वहां पहुचे तो देखा वहां तो लोगों का मेला लगा है क्योंकि जितने भी लड़के पेपर देने के लिये आये थे सबका पेपर एक साथ छूटा तो सारे लड़के उस महिला की झोपड़ी में टूट पड़े अपना अपना बैग लेने के लिये। उन लड़कों ने उस महिला के सारे गमले फोड़ दिये थे, जो कि वह बनाकर बेंचती थी और उसकी झोपड़ी पर पड़ी हुई वह त्रिपाल फाड़ डाली और लड़के उसकी झोपड़ी के अन्दर घुस कर अपना अपना बैग निकाल रहे थे। मैं तो यह सब नजारा देखकर दंग रह गया था क्योंकि वह महिला इतनी सारी भीड़ देख कर बेहोश हो चुकी थी और वहीं किनारे पड़ी थी जिसे कोई भी नहीं देख रहा था। उसकी एक छोटी से बच्ची रो रही थी। किसी भी लड़के को दया नहीं आ रही थी, मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि क्या किया जाये। मैं भी अपना बैग ढूंढ रहा था लेकिन मेरा बैग मिल ही नहीं रहा था ।
मेरे साथ अन्य कई लड़के भी खड़े थे जिनके भी बैग नहीं मिल रहे थे। उनमें से कोई बोल रहा था कि कई लड़के 2-3 बैग एकसाथ लेकर गये हैं हो सकता है मोबाइल की वजह से लेकर गये हों। उस बैग में मेरे हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के ओरिजनल डॉक्युमेंट थे,और तीनों का मोबाइल भी था। इस बार मोबाइल की टेंशन नहीं थी लेकिन डॉक्युमेंट की टेंशन थी। काफी देर तक बैग ढूंढने के बाद पाया कि मेरा बैग नाली में पड़ा था, जो कि एक सिरे से भीग चुका था। वह बैग मिट्टी में पड़ा रहने के कारण पहचान में नहीं आ रहा था। लेकिन मोना ने उस बैग को पहचान लिया था उसने तुरंत वह बैग उठाया खोला तो देखा कि वास्तव में वह हमारा ही बैग था उसमें हम लोगों के ही डॉक्युमेंट थे।
अपना बैग से डॉक्युमेंट निकालकर हम लोग वापस रेलवे स्टेशन की तरफ निकले। रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो देखा वहां भी बहुत भीड थी यह भीड़ वही थी जो लडके भर्ती देखने के लिये आये थे। वहां पर आर.पी.एफ की काफी सारी फोर्स जमा हो रखी थी। इन लड़को की बत्तमीजी को रोकने के लिये। जब ट्रेन आयी तो उसमें सारे लड़के एक साथ घुसने लगे , किसी ने भी टिकट नहीं लिया था। हम तीनों ने भी टिकट नहीं लिया और उन लड़को के साथ ही भीड़ में उस ट्रेन में घुस गये। उन्नाव निकलने के बाद हमारी ट्रेन में टीटी आया टिकट चैकिंग करने के लिये।
उसने एक लड़के से टिकट पूंछा, वह लड़का बोला कि नहीं है। टीटी बोला कि फाइन लगेगा। इतना सुनते ही सारे लड़के एक साथ जोर जोर से चिल्लाने लगे, कि मारो साले को, गालियां देते हुए सारे लोग चिल्ला रहे थे। कोई बोल रहा था कि फेंक दो इसको चलती ट्रेन से। हम लोग रिजर्वेशन वाले डिब्बे में घुसे हुए थे, लेकिन भीड़ बहुत थी। टीटी भी डर गया और वहां से चला गया। उसने किसी का भी टिकट चैक नहीं किया। फिर रात को नौ बजे के लगभग मैं वापस अपने घर आ गया।
जब मेरा CRPF Head Constable Ministerial Typing का Admit Card आया
रिटिन एग्जाम देने के बाद हम लोग वापस अपने घर पर आ गये थे। फिर हम इंतजार करने लगे कि कब हमारा रिटिन का रिजल्ट आयेगा। हम तीनों लोग (मैं, मोना और नीरज) डेली टाइपिंग की प्रैक्टिस किया करते थे। मेरे घर पर कंप्यूटर नहीं था, और न ही मोना के पास कम्यूटर था और न ही नीरज के पास । हम तीनों लोगों ने एक कम्प्यूटर सेंटर ज्वाइन कर लिया था जो कि 300 रुपये प्रति माह टाइपिंग सिखाने के लेता था। मैं तो PGDCA कर रहा था तो मैं वहीं पर शुरुआत के 10-15 मिनट तक टाइपिंग की प्रैक्टिस किया करता था और कभी कभी साइबर कैफे चला जाता था जो कि 15 रुपये में एक घंटे के लिये कम्प्यूटर देता था।
उस समय जियो जैसी सिमकार्ड नहीं थे और इंटरनेट भी इतना फ्री नहीं था। मैं तो उस समय बेरोजगार आदमी था। कभी कभी सब्जी वगैरह लाने में 15-20 रुपये बचा लिया करता था उससे ही मैं साइबर कैफे पर जाकर टाइपिंग की प्रैक्टिस किया करता था। मोना ने टाइपिंग की प्रैक्टिस को हल्के में लिया था उसका इंटरेस्ट ही नहीं था टाइपिंग में। नीरज और मैं हम दोनों लोग जी जान से टाइपिंग की प्रैक्टिस किया करते थे। मैं फेसबुक पर बहुत सारे ग्रुप में ज्वाइन हो रखा था और उससे ही भर्ती वाले लड़को के बीच में कनेक्ट था। हमेशा पूंछते रहते थे कि कब हमारा रिटिन का रिजल्ट आयेगा।
आखिरकार सी.आर.पी.एफ की बेवसाइट पर एक दिन Answer key अपलोड कर दी गयी। हम लोगों ने अपने रिटिन की ओ.एम.आर शीट की कॉपी से आन्सर मिलाये, जिसमें मेरे 126 नम्बर बन रहे थे, और नीरज के 117 नम्बर बन रहे थे । मोना की ओ.एम.आर शीट की कॉपी ही खो गयी थी। इसलिये उसके नम्बर का पता नहीं चल पाया। कुछ दिन बाद ही टाइपिंग का एडमिट कार्ड भी अपलोड हो गया। हम लोगों ने अपने अपने एडमिट कार्ड डाउनलोड किये औऱ प्रिंट करवा कर रख लिये। सबसे पहले मोना की टाइपिंग थी, उसके बाद मेरी टाइपिंग थी जो कि 08 मई 2013 को होनी थी, और उसके बाद नीरज की टाइपिंग होनी थी।
मोना तो अपनी टाइपिंग देने चला गया लेकिन जब वह वापस आया तो मैंने पूंछा कि क्या हुआ, वह बोला कि टाइपिंग में फेल हो गया। फिर में काफी देर तक उससे पूंछता रहा कि और क्या क्या हुआ , वहां क्या क्या करवाया जाता है। आखिर मेरा भी CRPF Head Constable Ministerial टाइपिंग का दिन आ गया। दिनांक 08 मई 2013 को मैं टाइपिंग देने गया । कैम्प में पहुंचने के बाद मैंने देखा कि वहां पर काफी सारे लड़के फील्ड में बैठे हुए थे और 30-30 लड़के हर 20 मिनट बाद बुलाये जाते थे। वहां पर एक सिपाही बैठा था मैंने उससे पूंंछा कि सर कितने लड़कों की टाइपिंग होती है, वह बोले कि प्रतिदिन 300 कैन्डीडेट बुलाये जाते हैं जिसमें से एक या दो ही पास होते हैं। काफी देर तक इंतजार करने के बाद मेरा भी नम्बर आ गया।
मैं उस कमरे में गया जहां पर तीस कम्प्यूटर लगे हुए थे जिन पर टाइपिंग करवायी जा रही थी। वहां पर एक अधिकारी भी बैठा था जिसकी निगरानी में टाइपिंग हो रही थी। सबसे पहले हमें इंस्ट्रक्शन दिये गये कि कैसे टाइपिंग करना है। जब उसने स्टार्ट बोला तो सभी लोग खटपट खटपट लग गये कीबोर्ड में, मेरे हाथ कॉप रहे थे टाइपिंग करते वक्त। शुरुआत में तो मुझसे काफी सारे अक्षर गलत हो गये फिर मैं धीरे धीरे टाइप करने लगा। आपको बताना चाहता हूं कि घर पर मेरी स्पीड 50-55 वर्ड प्रति मिनट निकलती थी, जो कि मैं एम.एस. वर्ड पर कागज देखकर टाइप किया करता था। लेकिन यहां पर तो मेरे हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे मुझे लगा कि आज तो मैं फेल होउंगा, लेकिन मैंने अपनी स्पीड को कंट्रोल किया, धीरे धीरे टाइपिंग करते करते मैंने काफी सारा मैटर टाइप कर दिया था तब तक देखा कि टाइम अप हो गया और कम्प्यूटर अपने आप ही रुक गया ।
कब 10 मिनट निकल गये मुझे तो बिल्कुल पता ही नहीं चला लेकिन जैसे ही टाइप अप हुआ था उस पर मेरी टाइपिंग स्पीड औऱ कितनी गलतियां की हैं सब लिख कर आ गया था। फिर सर ने बोला कि सभी लोग बाहर बैठो अभी रिजल्ट बताते हैं थोड़ी देर में। दस मिनट बाद हमारा रिजल्ट बताया गया जिसमें उन्होंने तीन लड़कों के नाम लिये । पहले जो दो लड़को के नाम लिये उनको बताया कि आपने 350 वर्ड से ज्यादा टाइप तो किया है लेकिन गलतियां आपने 450 से ज्यादा कर दीं इसलिये आप दोनो फेल हैं, फिर उसने मेरा नाम लिया और बोला कि केवल यही लड़का पास हुआ है जिसकी स्पीड निकली है 38.1 की और गलितयां की मात्र 9, मैं तो खुश हो गया था सभी लोग मेरी तरफ देख रहे थे।
सर ने बोला कि खाना खा के आये हो मैंने कहा नहीं। वह बोले के अभी टाइम लगेगा तब तक खाना खा लो और दुबारा आना अभी इंटरव्यू होगा। इतना बोलकर वह तो अपने काम में बिजी हो गये और सारे लड़को से बोल दिया ओके आप सभी लोगों को बेस्ट ऑफ लक फॉर नेक्सट टाइम। हम सभी लोग बाहर की ओर आने लगे, और बहुत सारे लड़के मुझसे पूंछ रहे थे कि भाई कितने महीने प्रैक्टिस की थी, कहां पर टाइपिंग प्रैक्टिस किया करते थे, दुनिया भर के प्रश्न लोग मुझसे पूंछ रहे थे, मैंने सबका उत्तर दिया। फिर मैं खाना वगैरह खाकर वापस कैम्प में आ गया। जहां पर देखा कि वहां उस दिन कोई भी पास नहीं हुआ था केवल मुझे छोड़कर। वहां सर ने बताया कि लास्ट दो दिन से कोई पास नहीं हुआ आज तुमने खाता खोला है।
जब मेरा CRPF Head Constable Ministerial का इंटरव्यू हुआ
कुछ देर बाद मेरा CRPF Head Constable Ministerial इंटरव्यू हुआ। वहां पर चार अधिकारी बैठे थे उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया। इंटरव्यू में पहले तो मेरा नाम , पिता का नाम, घर के बारे में, आदि पूंछते रहे, फिर उन्होंने पढ़ाई से संबंधित कई सारे प्रश्न पूंछे जिनका विवरण निम्न प्रकार है
- आवर्त सारणी किसने बनायी।
- आवर्त सारणी में कितने तत्व होते हैं।
- लखनऊ किस नदी के किनारे बसा हुआ है।
- अगर आपको एक दिन के लिये मुख्यमंत्री बना दिया जाये तो सबसे पहले किस नेता को जेल भेजोगे।
- आपको पसंद क्या है। मैंने कहा कि गाने सुनना, वह बोला किस टाइप के गाने, मैंने कहा डीजे गाने।
- डीजे का फुल फार्म क्या होता है।
- इंटरनेट और इंटरानेट में अन्तर है।
और भी कई सारे प्रश्न पूंछे थे मैं तो सभी भूल गया। मुझे जितने प्रश्नों के उत्तर आते थे उनक जवाव तो मैं दे देता था और जो नहीं आते थे मैं सीधा बोलता था कि सर नहीं पता। ऐसे ही मेरा इंटरव्यू भी हो गया और मुझे पास कर दिया गया। मुझे बताया गया कि मेरा मेडीकल ग्रुप केन्द्र रामपुर में होगा जिसका एडमिट कार्ड नेट पर आयेगा। उन्होंने बोला कि अब आप जा सकते हो। मैं खुश होकर वापस अपने घर की ओर चल दिया और जनरल डिब्बे का टिकट लेकर वापस अपने घर को आ गया।
जब मेरा मेडीकल हुआ
जून महीने में मेरा CRPF Head Constable Ministerial का मेडीकल ग्रुप केन्द्र रामपुर में हुआ था। मुझे दिनांक याद नहीं है। वहां पर जाकर मैं मुरादाबाद में अपनी बुआ जी के घर पर रुका था और वहां से रामपुर पास में ही पड़ता है। मैं ट्रेन से सुबह चला जाता था। मेरा मेडीकल होने में तीन दिन लग गये, क्योंकि जो डॉक्टर मेडीकल कर रहा था वह बहुत ही स्लो था एक दिन में मात्र लड़को का ही मेडीकल कर पाता था। खैर तीसरे दिन मेरा मेडीकल हुआ जहां पर मेरा ब्लड टेस्ट लिया गया, एक्सरे लिया गया, ई.सी.जी लिया गया, आंख, कान नाक सब चैक किया गया यहां तक कि मेराफऱफ प्राइवेट पार्ट को भी चैक किया गया। मैं सारे टेस्ट में पास हो गया और वहां से मुझे मेडीकल में पास कर दिया गया। मैं खुश होकर घर वापस आ गया। अब मैं मेरिट का इंतजार करने लगा। कुछ दिन बाद ही मेरिट भी आ गयी। जिसमें मेरा नाम आ गया। वर्ष 2013 में जनरल की मेरिट 154, ओ.बी.सी. 139 गयी थी। जिसमें मैं पास हो गया था और मेरे घरवाले सभी लोग खुश थे। अब मैं अपने ज्वाइनिंग लैटर का इंतजार करने लगा। नवम्बर लास्ट में मेरा ज्वाइनिंग लैटर आया, फिर मैंने दिसम्बर 2013 में CRPF Head Constable Ministerial के पद पर ज्वाइन किया।
दोस्तों ये था मेरी CRPF Head Constable Ministerial में नौकरी लगने तक का सफर , ये मेरे जीवन की असली कहानी है जो कि मेरे साथ घटित हुई थी। आपको ये कहानी कैसी लगी नीचे कमेंट करके हमें बताइयें।
जय हिंद।
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